क्या है चकोरी की खेती और कैसे देती है मुनाफा?
क्या आपने कभी चकोरी का नाम सुना है? यह चकोरी क्या होती है और इसकी खेती से किसान कैसे अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं,उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के तीर्थपुरी गांव के किसान अब पारंपरिक फसलों से हटकर चकोरी की खेती की ओर बढ़ रहे हैं। महज तीन महीने की इस फसल से किसान अच्छा-खासा लाभ कमा रहे हैं।
बुवाई का समय और फसल अवधि
चकोरी की खेती के लिए बुआई का समय अक्टूबर से नवंबर तक होता है और फसल अप्रैल से मई के बीच तैयार हो जाती है। शुरुआत में किसान केवल 50 बीघे में इसकी खेती कर रहे थे, लेकिन अब गांव के किसान समूह बनाकर लगभग 700 से 750 बीघे में चकोरी की खेती कर रहे हैं।
क्यों चुनी गई चकोरी की खेती
किसानों ने बताया कि पहले वे आलू, धान और मेंथा जैसी पारंपरिक फसलों की खेती करते थे, लेकिन इसमें उन्हें कभी फायदा और कभी नुकसान उठाना पड़ता था। इस अनिश्चितता से परेशान होकर उन्होंने कुछ अलग करने का सोचा और औषधीय पौधों में रुचि दिखाई। धीरे-धीरे उन्होंने कुछ ड्रग कंपनियों से संपर्क किया, जिन्होंने इस फसल को खरीदने की रुचि दिखाई। इसके बाद किसानों ने ट्रायल किया और जब सफलता मिली, तो बड़े पैमाने पर खेती शुरू कर दी।
चकोरी की खेती के फायदे
इस फसल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे छुट्टा जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते, और न ही इसकी चोरी का डर होता है। यह खाने-पीने की चीज नहीं होने की वजह से सुरक्षित रहती है। साथ ही, इसमें रोग-बीमारी का प्रकोप भी बहुत कम होता है। यही वजह है कि किसान इसे अन्य आम फसलों की तुलना में ज्यादा लाभकारी मानते हैं।
चकोरी की खेती लागत और मुनाफा
किसानों के अनुसार, चकोरी की बुआई 15 अक्टूबर से 30 दिसंबर तक होती है और यह मशीन से की जाती है। आलू बोने की मशीन को इस फसल के लिए अनुकूल रूप से तैयार किया गया है जिससे पैदावार अच्छी होती है। एक एकड़ में करीब 20 से 25 हजार रुपये की लागत आती है और मुनाफा 4 से 5 लाख रुपये प्रति एकड़ तक हो जाता है।
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चकोरी का उपयोग और बाजार
अब सवाल उठता है कि आखिर चकोरी होती क्या है? चकोरी एक जड़ वाली फसल है जो मूली की तरह दिखती है और इसे कासनी के नाम से भी जाना जाता है। इसका उपयोग कॉफी पाउडर, बिस्किट, चॉकलेट और जानवरों की दवाइयां बनाने में होता है। बाराबंकी के किसानों द्वारा उगाई गई चकोरी देश के कई राज्यों की बड़ी कंपनियां खरीद रही हैं।
कांट्रैक्ट फार्मिंग से मिलती है स्थिर आमदनी
किसान बताते हैं कि पहले मेंथा और आलू जैसी नगदी फसलों की कीमतें तय नहीं होती थीं, जिससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ता था। लेकिन अब वे चकोरी की खेती कांट्रैक्ट फार्मिंग के आधार पर कर रहे हैं, जिसमें पहले से ही फसल की कीमत तय हो जाती है। इससे उन्हें स्थिर और अच्छा मुनाफा मिलता है।
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