अगेती हरी मटर की खेती : किसानों की जेब भरने वाली सबसे मुनाफ़ेदार फसल

अगेती हरी मटर की खेती– सबसे मुनाफ़े वाली फसल

अगेती हरी मटर की खेती
अगेती हरी मटर की खेती

दोस्तों बहुत कम ऐसी सब्ज़ी फसलें होती हैं जिनको छाती ठोककर कहा जा सके कि यह जबरदस्त पैसे देगी। अगर सही टाइम पर बुवाई करो तो अगेती हरी मटर की खेती उनमें सबसे आगे है। सही समय पर बुवाई, सही प्रबंधन और बढ़िया बीज डाल दो, तो सिर्फ़ 55–60 दिन में मटर मंडी पहुँच जाती है और एक एकड़ से ₹1–3 लाख तक की कमाई हो सकती है। लेकिन दिक़्क़त ये है कि देश में बहुत कम किसान अगेती मटर को सफलतापूर्वक सर्वाइव करा पाते हैं। ज्यादातर किसान बुवाई तो कर देते हैं, लेकिन सही तकनीक न अपनाने से उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है।

अगेती मटर की बुवाई का सही समय

भारत में मटर की बुवाई अगस्त से दिसंबर तक होती है।
अगस्त महीने में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड जैसे ठंडे और पहाड़ी इलाकों में। मैदानी इलाके (हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक)नजब दिन का तापमान लगातार 28–30°C पर स्थिर हो जाए और बारिश का मौसम खुल जाए। साल 2025 की बात करें तो 20 सितंबर से 10 अक्टूबर के बीच मैदानी इलाकों में अगेती मटर की बुवाई एकदम मुफीद समय है।

अगेती हरी मटर की खेती की तैयारी

अगर खेत में पहले कोई फसल बोई गई थी, तो उसकी कटाई के बाद रोटावेटर चला दें। इससे पुराने फसल के अवशेष और खरपतवार मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाएंगे। इसके बाद खेत को लगभग 5–10 दिन खाली छोड़ दें, ताकि यह सारा जैविक पदार्थ धीरे-धीरे सड़कर मिट्टी में डी-कंपोज़ हो सके, जिससे जुताई और उर्वरा शक्ति अच्छी होगी। फिर भी इसमें देसी गोबर की खाद (3–5 ट्रॉली सड़ी-गली) या वर्मी कम्पोस्ट (8–10 क्विंटल प्रति एकड़) ज़रूर डालें।
अगर खेत सूखा है और नमी नहीं है तो पलेवा करें। पलेवा करने से मिट्टी भुरभुरी हो जाएगी और खरपतवार की समस्या भी कम होगी।

बेसल डोज़ उर्वरक

बुवाई से पहले सही और संतुलित मात्रा में खाद डालना ज़रूरी है।
फास्फोरस – 1 बैग DAP या 1 बैग TSP या 2 बैग SSP (100 किलो)। पोटाश (MOP)– 30–35 किलो प्रति एकड़। यूरिया – 20 किलो प्रति एकड़। सल्फर 80% 3 किलो प्रति एकड़ (फसल में सल्फर की पूर्ति और फंगीसाइड का काम करेगा)। दीमक/नेमाटोड बचाव – 3 किलो रीजेंट अल्ट्रा या 5 किलो कार्ट हाइड्रोक्लोराइड खाद में मिलाकर खेत में बुरका दें।

बीज और बीज मात्रा

अच्छी पैदावार के लिए सबसे ज़रूरी है सही बीज का चुनाव। किसानों के बीच सबसे ज़्यादा बोई जाने वाली वैरायटी UPL एडवांटा GS-10 है। इसके अलावा AP-3, आज़ाद-3, अरकिल जैसी किस्में या फिर स्थानीय स्तर पर सफल मानी जाने वाली वैरायटी भी ली जा सकती हैं।
बीज मात्रा – 40–50 किलो प्रति एकड़। जहाँ मिट्टी भारी और सख़्त है वहाँ 60–70 किलो भी डाला जाता है, लेकिन सामान्य मिट्टी में 40–45 किलो ही पर्याप्त है।

बीज उपचार (Seed Treatment)

बुवाई से पहले बीज ट्रीटमेंट ज़रूरी है ताकि उखेड़ा बीमारी और अन्य रोग न लगें। पुराने फंगीसाइड जैसे कार्बन+मैनकोजेब या थायोफेनेट मिथाइल इस्तेमाल कर सकते हैं। बेहतर विकल्प है UPL स्वाल कंपनी का कास्केड , जिसमें फंगीसाइड + इंसेक्टिसाइड का कॉम्बिनेशन होता है। मात्रा – 1 किलो बीज पर 3–4 ml। बीज को उपचारित कर छांव में सुखाएँ और फिर बुवाई करें।

बुवाई की विधियाँ

भारत में मटर की बुवाई कई तरीकों से होती है:

1. ब्रॉडकास्टिंग (छिटकवां बुवाई) – बीज छिटककर कल्टीवेटर चलाकर ऊपर से पाटा लगा देना।
2. मेड पर बुवाई – गाजर/मूली की तरह मशीन से।
3. सीड ड्रिल मशीन से – गेहूं/सरसों जैसी बुवाई।
इनमें से सीड ड्रिल विधि सबसे बेहतर मानी जाती है।

खरपतवार नियंत्रण

बुवाई के तुरंत बाद प्री-इमरजेंस हर्बीसाइड पेंडामेथालीन (1 लीटर/एकड़) का छिड़काव करें। इससे मिट्टी में पड़े खरपतवार बीज निष्क्रिय हो जाएंगे और मटर का अंकुरण बिना रुकावट के होगा।

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शुरुआती फसल प्रबंधन

15–20 दिन पर स्प्रे – NPK 19:19:19 + फंगीसाइड (एजोक्सी-स्ट्रोबिन + डिफेनोकोनाजोल जैसे एमस्टार टॉप) का प्रयोग करें। यह पौधे को पोषण देगा और जड़ों तक फंगीसाइड पहुँचकर उखेड़ा जैसी बीमारी से बचाएगा।

25–30 दिन पर पहली सिंचाई – जब मौसम गर्म हो और पौधे कुलमुलाने लगें तो स्प्रिंकलर से हल्की सिंचाई करें।

साथ में 20–25 किलो यूरिया + 5–7 किलो जिंक + 0.5 किलो कार्बन+मैनकोजेब प्रति एकड़ डालें। इससे जड़ें मज़बूत होंगी और रोग का प्रकोप कम होगा।

 

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