
धान की फसल में गलतियों का महत्व
धान में बाली बनते समय पाँच गलतियां ऐसी होती हैं जो पूरी फसल को चौपट कर देती हैं। चाहे फसल कल्ले बनने की अवस्था पर हो, फुटाव अवस्था पर हो, बाली निकलने की अवस्था (गोब या गबोट अवस्था) पर हो, या फिर दाने भरने की अवस्था पर – ये गलतियां हर चरण में बड़ी चुनौती बन जाती हैं। अगर किसान इस समय सही तरीका अपनाए तो पैदावार अच्छी मिलती है, लेकिन अगर एक छोटी सी भी चूक हो गई तो 35–40 क्विंटल उत्पादन तो छोड़िए, 10 क्विंटल उत्पादन लेना भी मुश्किल हो जाएगा।
सही समय पर सिंचाई का महत्व
धान की फसल 50 दिन के बाद ही बालियां बनाना शुरू कर देती है और इस समय सिंचाई देना बेहद जरूरी हो जाता है। अगर इस अवस्था पर पानी की कमी हो गई या जमीन सूखने लगी तो फसल को भारी नुकसान होता है। पानी जड़ों तक पहुंचकर उन्हें मजबूत बनाता है और पोषक तत्वों को अवशोषित करने में मदद करता है, जिससे बालियां लंबी और दाने भरे हुए बनते हैं।
45–50 दिन की फसल में खेत में कम से कम 5 सेंटीमीटर पानी रहना चाहिए। वहीं 65–85 दिन की फसल में 5–7 सेंटीमीटर पानी जरूरी है क्योंकि इस समय पौधे ठंडे रहते हैं और परागण प्रक्रिया (पॉलिनेशन) सही तरीके से होती है। जब दाना भरना शुरू हो जाए तो पानी की मात्रा 3–5 सेंटीमीटर कर दें। और जब बालियों में 80% दाना भर जाए तो कटाई से 15 दिन पहले सिंचाई पूरी तरह बंद कर दें। ध्यान रखें – सिंचाई बार-बार नहीं, बल्कि जरूरत के अनुसार करनी है।
यूरिया का गलत प्रयोग
दूसरी सबसे बड़ी गलती किसान यूरिया डालने में करता है। कई किसान सोचते हैं कि 45 दिन की फसल में यूरिया डालने से बालियां अच्छी आएंगी। लेकिन इस समय पौधे को नाइट्रोजन की जरूरत नहीं होती। अगर इस अवस्था पर यूरिया डाल दिया जाए तो पौधा अपनी सारी ऊर्जा पत्ते और लंबाई बढ़ाने में खर्च कर देता है, जिससे तना कमजोर हो जाता है और पौधा अपने ही वजन से गिर जाता है। साथ ही, इस समय यूरिया डालने से गर्दन तोड़, ब्लास्ट और झुलसा रोग का खतरा भी बढ़ जाता है।
यूरिया का प्रयोग 45 दिन से पहले कर लेना चाहिए। इस अवस्था पर अगर जरूरत हो तो एनपीके 12:61:00 का उपयोग करें, जिसमें फास्फोरस भरपूर मात्रा में होता है और यह जड़ों की वृद्धि तथा बालियों के विकास में मदद करता है।
झंडा पत्ती (फ्लैग लीफ) का महत्व
तीसरी गलती किसान झंडा पत्ती को नजरअंदाज करने की करता है। यह पत्ती पौधे की “सोलर प्लेट” होती है क्योंकि यही पत्ती बाली को भोजन उपलब्ध कराती है। जितनी चौड़ी और लंबी झंडा पत्ती होगी, उतनी ही अच्छी बाली बनेगी और दानों का भराव होगा। इस अवस्था में पौधे को भरपूर पोषण चाहिए, जिसके लिए एनपीके 00:52:34 का प्रयोग करना बहुत जरूरी है। इसमें फास्फोरस और पोटाश की उच्च मात्रा होती है, जो बालियों के सही विकास और दानों के भराव के लिए जरूरी है।
बालियों के समय यूरिया की गलती
चौथी गलती किसान तब करता है जब बाली निकलने लगती है। कई किसान सोचते हैं कि फसल पीली पड़ रही है या दाने भरने के लिए ज्यादा पोषण चाहिए, तो वे बार-बार यूरिया डाल देते हैं। लेकिन इस समय यूरिया डालना बिल्कुल गलत है।
इसके बजाय 2025 के लिए सबसे अच्छा विकल्प “धान बाली विकास कॉम्बो” है। इसमें एनपीके 00:52:34, पोटाश, बोरोन और सूक्ष्म पोषक तत्व शामिल होते हैं। फास्फोरस और पोटाश जड़ों को मजबूत बनाते हैं, झंडा पत्ती को ऊर्जा देते हैं और बालियों को लंबा तथा मजबूत बनाते हैं। पोटाश सेल इलोंगेशन में मदद करता है जिससे दाने मोटे और चमकदार बनते हैं। बोरोन परागण प्रक्रिया को बढ़ाता है, जिससे हर बाली में दाना भरता है। साथ ही माइक्रोन्यूट्रिएंट्स पौधे को हरा-भरा रखते हैं और दानों की संख्या बढ़ाते हैं।
कीट और रोग नियंत्रण की गलती
पाँचवीं और सबसे बड़ी गलती किसान कीट और रोग नियंत्रण में करता है। धान की फसल में तना छेदक और पत्ती लपेटक कीट एकदम से प्रकोप करते हैं। कई किसान इनसे बचाव के लिए अलग-अलग दवाइयाँ ले आते हैं, लेकिन यह सही तरीका नहीं है। इन दोनों कीटों को रोकने के लिए केवल “कात्यायनी चक्रवीर” का उपयोग करें, जिसमें क्लोरेंटालिप्रो 18.5% एससी होता है। इसकी मात्रा 60 ml प्रति एकड़ है और यह दोनों कीटों पर प्रभावी नियंत्रण देता है।
इसी तरह, फसल में झुलसा, पत्ती धब्बा और गर्दन तोड़ जैसे रोग आते हैं। इनके लिए भी अलग-अलग दवाइयों की बजाय एक ही दवा काफी है – “कात्यायनी प्लांटिवो”। इसमें ट्राईफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन 25% + टेबीकोनाजोल 50% WG होता है, जो प्रिवेंटिव और क्योरिटिव दोनों तरीके से काम करता है। इसका उपयोग 80 ग्राम प्रति एकड़ करना चाहिए।
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