Ashwagandha Farming : जैविक तरीक़े से करे अश्वगंधा की खेती और कमाये कम लागत में अधिक मुनाफ़ा।

अश्वगंधा की खेती
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अश्वगंधा एक औषधीय फसल है अश्वगंधा की खेती खरीफ व रवी में की जा सकती है। अश्वगंधा का पौधा मौसमी शाकीय, शाखायुक्त, सीधा बढ़ने वाला होता है। इसकी पत्तियाँ छोटी बैगन के समान होती हैं। फल गोला मटर के दाने के बराबर पीला या लाल नारंगी रंग के होते हैं। इसके बीज बैंगन जैसे बहुत छोटे होते हैं।

उन्नत कृषि तकनीक अश्वगंधा की खेती असिंचित दशा में खरीफ में की जा सकती है। इसे अरहर व फल वृक्षों जैसे पपीता, नीबू, आम आदि के बागों में अंतर्वती फसल के रूप में भी लगाया जा सकता है। इसकी खेती में कम सिंचाई, उर्वरक व फसल संरक्षण दवाओं का प्रयोग होता है। साथ ही इसे पशु इत्यादि भी नहीं खाते हैं। इस प्रकार यह बारानी खेती के रूप में कम खर्च में अधिक मुनाफा देने वाली औषधीय फसल है। जिसकी जैविक खेती संभव है।

अश्वगंधा की खेती कैसे करें

जलवायु

अश्वगंधा की खेती खरीफ व रवी दोनों मौसम में की जा सकती है। इसके लिये 20-30°C तापमान तथा औसत 100 सेमी. वर्षा उपयुक्त होती है। अधिक वर्षा हानिकारक होती है। इसे असिंचित फसल के रूप में भी लगाया जा सकता है।

भूमि

अश्वगंधा की खेती के लिए हल्की से मध्यम भूमि में जैसे वलुई दोमट से हल्की रेतीली मिट्टी जिसका निकास अच्छा हो की जा सकती है। जल भराव वाली भूमि नहीं होनी चाहिये।

खेत की तैयारी

मानसून प्रारंभ होने से पूर्व जुताई करके दो या तीन बार हल बखर से जुताई कर मिट्टी को मुरमुरा बना लिया जाता है। फिर खेत में पाटा लगाकर समतल बना लिया जाता है। अंतिम जुताई के समय 10-15 टन गोबर की खाद खेत में मिला देना चाहिये।

उन्नत किस्में

अश्वगंधा की खेती के लिए क़िस्म – जवाहर अश्वगंधा 20, जवाहर अश्वगंधा 134, (वीज जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर में उपलब्ध) पोपिता (सिमैप लखनऊ में वीज उपलब्ध)

बोनी का समय

खरीफ- अगस्त अंतिम सप्ताह के बाद ,रवी – अक्टूबर (सिंचित)

बीज की मात्रा

10 किलो बीज / हेक्टे…

बीज उपचार

ट्राइकोडर्मा जैव फफूंदीनाशक 5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोनी करना चाहिये ।

बोने की विधि

इसकी योनी कतारों में 25 सेमी. की दूरी पर तथा 1-2 सेमी. की गहराई पर करना चाहिये। वीज अधिक गहरा नहीं बोना चाहिये। इसकी बोनी छिटककर भी की जाती है परंतु इसमें निंदाई गुड़ाई आदि में सरलता नहीं होती है। इसके पौधे रोपा लगाकर भी लगाये जा सकते हैं परंतु सिंचाई आवश्यक है।

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खाद व उर्वरक

खेत तैयार करते समय 15-20 टन गोबर की खाद या 5 टन वर्मी कम्पोस्ट / हेक्टेयर) देना चाहिये।

खरपतवार नियंत्रण

बोनी के 20-25 दिन बाद फसल की निंदाई गुड़ाई आवश्यकता पड़ने पर 50 दिन बाद दूसरी निंदाई करनी चाहिये। इससे जड़ों की वृद्धि अच्छी होती है।

सिंचाई 

खरीफ के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती किंतु रबी के मौसम में 3 से 5 बार हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसकी कटाई पांच माह बाद की जाती है।

कटाई एवं खुदाई

जब पौधे की निचली पत्तियाँ सूखने लगे एवं निचले फल पकने लगे तब पौधे को जड़ सहित उखाड़ लेना चाहिये, देर होने पर जड़ों में रेशा बढ़ जाता है। यदि उखाड़ने में जड़े टूट रहीं हो तो हल्का पानी देकर पौधे उखाड़ने चाहिये । जड़ो को काटकर साफ पानी में धोकर सुखा लें। इन जड़ों को इसी प्रकार या पीसकर पावडर बनाकर पैकिंग करके भण्डारित करना चाहिये ।

जड़ों का श्रेणीकरण

ग्रेड ‘ए’ – इस वर्ग में जड़ों का ऊपरी भाग जिसका छिल्का पतला औसत लंबाई 5 सेमी. व व्यास 1 सेमी. होता है।

ग्रेड ‘बी’ – इस वर्ग में जड़ों के बीच का भाग आता है जड़ों की औसत लंबाई 3 सेमी. व्यास 0.5-0.9 सेमी. होता है।

ग्रेड ‘सी’ जड़ों का अंतिम भाग इस वर्ग में आता है। बीज बनाने के लिये पौधों को पूर्ण परिपक्व होने दिया जाता है और फलों को लकड़ी से पीटकर निकालकर बीज बनाया जाता है।

उपज

सूखी जड़ों का उत्पादन लगभग 6-8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर आता है साथ ही बीज़ों से भी अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है। बीज उत्पादन लगभग 1-2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर आता है। सूखी जड़ें लगभग 100 रु. प्रति किलो व बीज लगभग 40-50 रु. प्रति किलोग्राम की दर से बिक जाता है।

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