काली हल्दी की जैविक खेती
पारंपरिक खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बनते जा रहा है क्योंकि यह मिट्टी की उर्वरता और उत्पादकता को हानि पहुंचा रहा है जिसके कारण फसलों की उत्पादकता में कमी आ रही है जिससे किसानों को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ रहा है एवं मिट्टी की गुणवत्ता भी नष्ट होती जा रही है ऐसे में किसान औषधि फसलों की खेती कर अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं और साथ ही साथ मिट्टी की उर्वरता और उत्पादकता को भी बढ़ा सकते हैं औषधि की खेती के रूप में किसान भाइयों आप काली हल्दी की खेती कर सकते हैं जो की समान हल्दी से 2 से 3 गुना अधिक मुनाफा का प्राप्त करा सकती है
काली हल्दी की विशेषताएं
काली हल्दी बाहरी रूप से सामान हल्दी के समान दिखाई देती है काली हल्दी का अंदरूनी भाग नीले काले या बैगनी रंग का दिखाई देता है एवं इसके प्रकांड से तीखी गंध आती है जो कि इसमें मौजूद कपूर और स्टार्च के कारण पाई जाती है है जो की समान हल्दी से अलग होती है इसके साथ-साथ काली हल्दी में समान हल्दी की अपेक्षा अधिक औषधि गुण पाए जाते हैं ।जिसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबैक्टीरियल और एंटीइन्फ्लेमैटिक गुण शामिल होते हैं हल्दी का विशेष तौर पर उपयोग कैंसर के इलाज एवं कुष्ठ रोग, स्वास रोग,अस्थमा, ट्यूमर ,एलर्जी बुखार , आदि जैसी बीमारियों के लिए उपयोग किए जाते हैं।
जिसके कारण इसकी मांग दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रही है जिससे किसानों को अधिक लाभ प्राप्त करने का अवसर प्रदान हो रहा है इसकी खेती में बिना किसी रासायनिक खाद एवं कीटनाशक के आसानी से किया जा सकती है यह औषधि फसल होने के कारण इसमें अपने आप में इसके राइजोम में एंटीफंगल ,एंटीबैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं जो कि फसल को रोगों से लड़ने में मदद करते हैं।
काली हल्दी की जैविक खेती
काली हल्दी की जैविक खेती सामान्य हल्दी की तरह ही की जाती है।
भूमि की तैयारी
भूमि की तैयारी के लिए सबसे पहले आपको खेत में पहली गहरी जुताई करनी चाहिए।जो की 1 से 1.5 फीट होनी चाहिए।गहरी जुताई करने के बाद आपको भूमि में वर्मी कंपोस्ट ,नीम खली, जिप्सम पाउडर एवं ट्राईकोडर्मा में फफूंदनाशी पाउडर का एक मिक्सर तैयार करके खेत में बराबर मात्रा में डाले एवं पुनः खेत की जुताई कर देनी ।इस मिश्रण में जिसमें सामान्य रूप से 2 टन वर्मी कंपोस्ट 5 टन सामान्य खाद या गोबर खाद एवं 50 किलो नीम का बुरादा और 80 से 100 किलो जिप्सम पाउडर एवं ट्राईकोडर्मा का इस्तेमाल करके भूमि में मिला देना।

बीज बुआई का समय एवं बीज उपचार
काली हल्दी की जैविक खेती के बुवाई का समय मुख्य रूप से जून जुलाई या खरीफ का महीना होता है जिसमें जून के प्रथम सप्ताह से लेकर जुलाई के अंतिम सप्ताह तक अच्छा समय माना जाता है हल्दी की बुवाई मुख्य रूप से प्रकांड के द्वारा की जाती है 1 एकड़ में 250 किलोग्राम प्रकंद का इस्तेमाल किया जाता है प्रखंडों का बीज उपचार चूने के पानी से किया जा सकता है 10 लीटर पानी में एक किलो चूने को अच्छी तरह घोलकर उसमें प्रबंध को 10 मिनट तक छोड़ दें एवं 10 मिनट बाद उसे निकाल कर 2 इंच की गहराई पर बुवाई कर दें।
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सिंचाई एवं खाद
अगर आप इस फसल की खेती जून जुलाई में कर रहे हैं तो इसमें 8 -10 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है एवं सिंचाई मौसम के ऊपर आधारित रहती है काली हल्दी की खेती में रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता का नहीं पड़ती है एवं इसमें रोगों की समस्या नहीं आती है आप इसे सामान्य जैविक खाद जैसे वर्मिकम्पोस्ट, जैविक नाइट्रोजन, जैविक फ़ॉस्फ़ोरस, चूने के पानी एवं गऊमूत्र की सहायता से अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं एवं इसमें किसी भी प्रकार के कीट एवं रोगों की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। एवं खरपतवार से बचने के लिए आप इसमें आर्गेनिक माल्चिंग का इस्तेमाल के मिट्टी की नमी को बनाये रख सकते है।
हल्दी की जैविक खेती की कटाई एवं उत्पादन
काली हल्दी की फसल सामान हल्दी की तरह 6 से 8 महीने की होती है इसकी परिपक्वता पत्तों के पीले पड़ने पर मानी जाती है जब हल्दी के पत्ते मुख्य रूप से पीले होने लगते हैं तो यह कटाई के लिए तैयार हो जाती है 1 एकड़ में हल्दी का उत्पादन 40 क्विंटल से 50 क्विंटल तक निकल जाता है जो कि किसानों को अधिक मुनाफा प्राप्त करा सकता है।
सामान्य काली हल्दी का भाव 500 से 700 प्रति किलोग्राम की दर से मार्केट में आसानी से बिक रहा है एवं किसान अगर इससे और अधिक मुनाफा प्राप्त करना चाहते है तो का हल्दी का बाय प्रोडक्ट या वैल्यू एडिशन करके आसानी से 4000 प्रति किलो बेच सकते है एवं अपनी आय को चार गुना बढ़ा सकते है। इस तरह आप काली हल्दी की जैविक खेती आसानी से करके अधिक लाभ कमा सकते है।