
वह रहस्य छुपा है सही किस्म के चुनाव में। जी हां, एक सही किस्म आपकी मेहनत को दो गुना फल दे सकती है। मैं आपको गेहूं की ऐसी चैंपियन किस्मों के बारे में बताने जा रहा हूं जिन्होंने पैदावार के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। इनमें से कुछ किस्में तो ऐसी हैं जो गर्मी को भी मात देती हैं और कुछ ऐसी जो बीमारियों को आपके खेत के पास भी नहीं भटकने देंगी।
Top 5 Varieties of Wheat
पहली किस्म: करण वंदना (DB 187)
इस किस्म को भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल के वैज्ञानिकों ने खासतौर पर पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे क्षेत्रों के लिए तैयार किया है। यह प्रति हेक्टेयर 64 क्विंटल से भी ज्यादा की पैदावार दे सकती है। गोरखपुर की महिला किसानों ने तो इस किस्म को लगाकर एक नई मिसाल कायम कर दी है।
करण वंदना की फसल सिर्फ 120 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। इसकी सबसे बड़ी ताकत है पत्तों के झुलसने और कई दूसरी बीमारियों से लड़ने की क्षमता। इसकी रोटी स्वादिष्ट बनती है और इसमें आयरन की मात्रा भी भरपूर होती है। पूर्वी भारत के किसानों के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है।
दूसरी किस्म: करण वैष्णवी (DB 303)
यह पैदावार की दुनिया की बाहुबली है। किसान भाई इस किस्म से 81 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की पैदावार ले रहे हैं, जबकि वैज्ञानिकों के अनुसार इसमें 97 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देने की क्षमता है।
यह किस्म उत्तर पश्चिमी भारत के मैदानी इलाकों में अगेती बुवाई के लिए बेहतरीन विकल्प है और लगभग 145 दिनों में पकती है। यह रतुआ और करनाल बंठ जैसी बीमारियों की कट्टर दुश्मन है। इसकी रोटी और ब्रेड की क्वालिटी भी शानदार है। सिंचाई की अच्छी व्यवस्था वाले किसानों के लिए यह रिकॉर्ड तोड़ पैदावार की गारंटी है।
तीसरी किस्म: पूसा यशस्वी (HD 326)
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित यह किस्म औसतन 57 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार देती है, और देखभाल अच्छी हो तो 79 क्विंटल तक भी दे सकती है। यह लगभग 142 दिनों में पकती है और स्ट्राइप रस्ट, लीफ रस्ट और गेहूं ब्लास्ट जैसी बीमारियों के खिलाफ मजबूत ढाल का काम करती है।
इसमें 12.8% तक प्रोटीन होता है, जिससे यह ब्रेड और चपाती बनाने वाली कंपनियों की पसंदीदा किस्म बन चुकी है। अक्टूबर के आखिर में बुवाई करने वालों के लिए यह भरोसेमंद विकल्प है।
चौथी किस्म: WH 1270
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा विकसित यह किस्म हरियाणा और आसपास के क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसकी खासियत है गर्मी के प्रति सहनशीलता। जब अन्य किस्मों का दाना सिकुड़ जाता है, तब भी WH 1270 मोटा और वजनदार दाना देती है।
यह औसतन 75 क्विंटल और अधिकतम 91.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार दे सकती है। यह किस्म पीले और भूरे रतुआ से लड़ने की जबरदस्त क्षमता रखती है और मजबूत तनों के कारण आसानी से गिरती नहीं है।
पांचवी किस्म: पूसा तेजस (HI 8759)
यह कठिया या ड्यूरम गेहूं की किस्म खासतौर पर मध्य प्रदेश के किसानों के लिए बनाई गई है। यह 65 से 75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार देती है और केवल 115 से 125 दिनों में पक जाती है।
इसके दाने आकर्षक, चमकदार और वजनदार होते हैं—हजार दानों का वजन लगभग 60 ग्राम तक। काले और भूरे रतुआ जैसे रोग इसके सामने टिक नहीं पाते। बाजार में बेचने पर इसके वजनदार दाने से अधिक मुनाफा मिलता है।
ये भी देखे: farming Tips : टमाटर में फ्लावरिंग स्टेज आने पर इन बातों का रखे ध्यान होगी अधिक
